FSSAI की सख़्त चेतावनी: ‘100% शुद्ध’ जैसे भ्रामक दावों से रहें सावधान! जानिए नया नियम और उसके पीछे की वजह

FSSAI : स्वस्थ जीवन के लिए जागरूक रहिए, लेबल ध्यान से पढ़िए और ईमानदार ब्रांड्स को ही चुनिए!

आज के उपभोक्ता तेजी से स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे हैं और ‘100% शुद्ध’, ‘100% ऑर्गेनिक’, ‘100% नेचुरल’ जैसे दावे उन्हें उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन अब भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने इस पर सख्त रुख अपनाया है। हाल ही में FSSAI ने सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों (FBOs) को चेतावनी देते हुए कहा है कि वे ‘100%’ जैसे शब्दों का प्रयोग अपने लेबलिंग, पैकेजिंग और प्रमोशन में न करें। आइए जानते हैं इस नए दिशा-निर्देश की पूरी जानकारी, इसका कानूनी आधार, और उपभोक्ताओं व ब्रांड्स पर इसका प्रभाव।

क्या है FSSAI का नया निर्देश?

FSSAI ने एक ताज़ा एडवाइजरी जारी की है जिसमें सभी FBOs को यह निर्देश दिया गया है कि वे अपने उत्पादों की लेबलिंग, विज्ञापन या प्रमोशनल कंटेंट में ‘100%’ जैसे शब्दों का उपयोग न करें।

FSSAI के अनुसार:

  • ‘100%’ शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है।
  • यह उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकता है और अन्य प्रतिस्पर्धी उत्पादों को नीचा दिखा सकता है।
  • ऐसे दावे उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं को अनावश्यक रूप से बढ़ा सकते हैं।

कानूनी संदर्भ और नियम:

FSSAI का यह निर्देश Food Safety and Standards (Advertising and Claims) Regulations, 2018 के तहत जारी किया गया है।

इन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:

  • Sub-regulation 10(7): ऐसा कोई भी दावा या विज्ञापन जो अन्य निर्माताओं को नीचा दिखाता है या उपभोक्ताओं को गुमराह करता है, निषिद्ध है।
  • Sub-regulation 4(1): सभी दावे सत्य, स्पष्ट, अर्थपूर्ण और गैर-भ्रामक होने चाहिए और उपभोक्ताओं को जानकारी समझने में मदद करनी चाहिए।

‘100%’ शब्द का दुरुपयोग क्यों है खतरनाक?

  • ग़लत धारणा: जब कोई उत्पाद ‘100% शुद्ध’ या ‘100% नेचुरल’ कहता है, तो उपभोक्ता यह मान लेते हैं कि यह पूरी तरह से बिना किसी मिलावट या रसायन के बना है। जबकि व्यावहारिक रूप से ऐसा दावा करना संभव नहीं होता।
  • अन्य ब्रांड्स पर असर: इस तरह के दावे अन्य ब्रांड्स की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकते हैं, चाहे वे भी गुणवत्ता में समान हों।
  • भरोसे की समस्या: लंबे समय में उपभोक्ता ऐसे दावों से भ्रमित होकर पूरी खाद्य इंडस्ट्री पर से भरोसा खो सकते हैं।

वास्तविक उदाहरण:

मान लीजिए एक दूध उत्पादक कंपनी अपने पैकेट पर ‘100% प्योर मिल्क’ का दावा करती है, लेकिन उसका दूध UHT प्रक्रिया से गुज़रा होता है और उसमें विटामिन्स मिलाए गए होते हैं। तकनीकी रूप से यह दूध प्योर नहीं रहा क्योंकि उसमें कुछ ऐडिटिव्स और प्रोसेसिंग एलिमेंट्स जोड़े गए हैं। उपभोक्ता इसे पूरी तरह प्राकृतिक मानते हैं, जो भ्रम पैदा करता है।

इसी तरह कई बार ‘100% ऑर्गेनिक’ लिखकर ऐसे उत्पाद बेचे जाते हैं, जिनके पास उचित ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन नहीं होता। यह न केवल उपभोक्ताओं के साथ धोखा है, बल्कि असली प्रमाणित ब्रांड्स के लिए नुकसानदेह है।

ट्रेंडिंग और SEO की दृष्टि से क्यों है ये मुद्दा ज़रूरी?

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फूड ब्रांड्स के लिए क्या है रास्ता?

  • ट्रांसपेरेंसी को प्राथमिकता दें: ब्रांड्स को अपने उत्पादों की सच्चाई को साफ-साफ बताना चाहिए।
  • सत्यापित दावे करें: केवल वही दावे करें जो वैज्ञानिक या तकनीकी रूप से सिद्ध किए जा सकते हैं।
  • नई मार्केटिंग रणनीति अपनाएं: क्रिएटिव लेकिन ईमानदार टैगलाइन का उपयोग करें जैसे: “प्राकृतिक तत्वों से तैयार”, “बिना प्रिज़र्वेटिव के”, “साफ-सुथरी प्रक्रिया से बना हुआ।”
  • सर्टिफाइड टैग्स का प्रयोग करें: यदि आपका उत्पाद वाकई ऑर्गेनिक है, तो मान्यता प्राप्त संस्थाओं से सर्टिफिकेट लें और वही दर्शाएं।

उपभोक्ताओं के लिए संदेश:

  • लेबल को ध्यान से पढ़ें: किसी भी ‘100%’ दावे पर आंख बंद करके भरोसा न करें।
  • स्रोत और प्रमाण की जांच करें: ब्रांड्स की वेबसाइट या पैकेज पर लिखे तथ्यों को स्वतंत्र स्रोतों से जांचें।
  • सरकारी निर्देशों पर ध्यान दें: FSSAI जैसी संस्थाओं के निर्देश उपभोक्ता हित में होते हैं।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सजग रहें: कई बार इंस्टाग्राम या फेसबुक जैसे माध्यमों पर भी भ्रामक दावे किए जाते हैं, ऐसे विज्ञापनों से बचें।

निष्कर्ष:

FSSAI का यह कदम उपभोक्ताओं की सुरक्षा और विश्वास को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। ‘100%’ जैसे भ्रामक दावों पर प्रतिबंध से न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि ब्रांड्स को भी अधिक जिम्मेदार बनने का अवसर मिलेगा। इस निर्देश से सभी खाद्य उत्पाद निर्माताओं और उपभोक्ताओं को एक नई दिशा मिलेगी — ईमानदार लेबलिंग और जागरूक उपभोग की।

Source of content : FSSAI official website

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